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दिल्ली कृत्रिम वर्षा: 29 अक्टूबर को निर्धारित – जहरीली हवा के खिलाफ भारत की साहसिक छलांग?

कृत्रिम वर्षा

दिल्ली, जो अक्सर सर्दियों में दम घोंटने वाले प्रदूषण की चपेट में आ जाती है, अब एक साहसिक और वैज्ञानिक समाधान की ओर देख रही है: कृत्रिम वर्षा। 29 अक्टूबर को शहर में अपनी पहली कृत्रिम वर्षा होने वाली है, जो जहरीली हवा से लड़ने के लिए भारत की सबसे महत्वाकांक्षी पहल को चिह्नित कर रही है। यह सिर्फ एक प्रयोग नहीं है, बल्कि यह उम्मीद की किरण है कि प्रौद्योगिकी और दृढ़ संकल्प से सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों का भी सामना किया जा सकता है।

यह ऐतिहासिक परियोजना IIT कानपुर के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में, जोधपुर के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च के सहयोग से, और दिल्ली सरकार के समर्थन से साकार हो रही है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य शहर में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को कम करना है, जो हर साल लाखों लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

कृत्रिम वर्षा कैसे काम करती है?

कृत्रिम वर्षा, जिसे ‘क्लाउड सीडिंग’ भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों में कुछ पदार्थों को फैलाया जाता है ताकि वे वर्षा उत्पन्न कर सकें।

  1. बादलों की पहचान: पहले, उपयुक्त बादलों की पहचान की जाती है जिनमें पर्याप्त नमी हो।
  2. सीडिंग एजेंट: फिर, एक विशेष विमान या ड्रोन का उपयोग करके, सिल्वर आयोडाइड या सूखा बर्फ जैसे ‘सीडिंग एजेंट’ को इन बादलों में छोड़ा जाता है।
  3. संघनन और वर्षा: ये एजेंट बादलों में मौजूद जल वाष्प के लिए संघनन नाभिक (condensation nuclei) के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जल की बूंदें बनती हैं और उनका आकार बढ़ता है, अंततः वे वर्षा के रूप में नीचे गिरती हैं।

IIT कानपुर की टीम ने इसके लिए विशेष उपकरण और तकनीक विकसित की है। उन्होंने एक ऐसा विमान तैयार किया है जो सटीक रूप से सीडिंग एजेंटों को बादलों में फैला सकता है, जिससे अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित हो सके।

क्यों दिल्ली को कृत्रिम वर्षा की आवश्यकता है?

दिल्ली की वायु गुणवत्ता हर साल अक्टूबर और नवंबर के महीनों में “गंभीर” से “खतरनाक” श्रेणी तक पहुँच जाती है। पराली जलाने, वाहनों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन और मौसमी परिस्थितियाँ (शांत हवाएँ और तापमान में गिरावट) इस स्थिति को और भी बदतर बना देती हैं। इस जहरीली हवा के कारण सांस संबंधी बीमारियाँ, हृदय रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ जाती हैं।

कृत्रिम वर्षा से धूल और प्रदूषक कणों को ज़मीन पर लाने में मदद मिल सकती है, जिससे हवा की गुणवत्ता में अस्थायी सुधार हो सकता है। यह एक त्वरित समाधान है जो दीर्घकालिक उपायों (जैसे प्रदूषण नियंत्रण और हरित ऊर्जा) के साथ मिलकर काम करेगा।

आगे की चुनौतियाँ और उम्मीदें

हालांकि यह एक आशाजनक कदम है, फिर भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कृत्रिम वर्षा की सफलता मौसम की स्थिति, बादलों की उपलब्धता और सीडिंग प्रक्रिया की सटीकता पर निर्भर करती है। इसके अलावा, इसकी लागत और पर्यावरण पर संभावित दीर्घकालिक प्रभाव पर भी विचार किया जा रहा है।

यदि 29 अक्टूबर को यह प्रयोग सफल होता है, तो यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा। यह न केवल दिल्ली के निवासियों के लिए साफ हवा की उम्मीद जगाएगा, बल्कि अन्य प्रदूषण-ग्रस्त शहरों को भी ऐसे अभिनव समाधानों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा। यह भारत की दृढ़ता और वैज्ञानिक क्षमता का प्रमाण होगा, जो हमें एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जाएगा।

यह सिर्फ बारिश नहीं होगी; यह एक राष्ट्र की उस प्रतिबद्धता का प्रतीक होगी कि वह अपने नागरिकों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करे।

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